किसान अब समझने लगे हैं, खेती वही जो बाजार के मन को भाए

उत्पादन में भरपूर बढ़ोत्तरी के बावजूद लाखों किसानों की आजीविका की राह आसान नहीं है। बाजार तक पहुंच बढ़ाने अब किसान तकनीक का उपयोग भी बढ़ा रहे है। ऐसे मे उनके कदम अब वैसी खेती की ओर बढ़ने लगे हैं, जिसकी बाजार में मांग है। घरेलू व अंतरराष्ट्रीय बाजार के रुख को देखते हुए भारतीय कृषि की दिशा भी बदलने लगी है। परंपरागत खेती की तरफ लौटने के साथ कई जगहों पर 'जैसी मांग, वैसी खेती' होने लगी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी बिहार में केले जैसी गैर-परंपरागत फसल की खेती बड़े पैमाने पर होने लगी है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश बुलंदशहर और अलीगढ़ के एक बड़े हिस्से में गाजर की सामूहिक खेती हो रही है, जो कांट्रैक्ट खेती का बेहतरीन नमूना है।
बिहार में छोटी-बड़ी नदियों का जाल है। राज्य में हजारों तालाब और जलाशय हैं, जिसे मछली पालन का एक बड़ा केंद्र बनाने की मुहिम परवान चढ़ने लगी है। आम के निर्यात में अभी तक गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे पश्चिमी व दक्षिणी राज्य ही आगे रहते थे। लेकिन कोविड-19 के दौरान उत्तर प्रदेश से आम का निर्यात उत्साहजनक रहा है। यहां से हरी सब्जियों के निर्यात की शुरुआत भी कुछ किसान समूहों ने की है।
ऑर्गेनिक फसलों के साथ फल-फूल और सब्जियों की मांग घरेलू बाजार के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी जबर्दस्त रूप से बढ़ी है। ऐसे गैर-परंपरागत फलों की खेती भी घरेलू किसानों ने शुरू की है, जो अभी तक आयात होते रहे हैं। इस तरह की खेती में पूर्वोत्तर के राज्यों ने उल्लेखनीय प्रदर्शन किया है। उन्हें वहां की जलवायु से भरपूर सहयोग मिल रहा है। कृषि मंत्रालय ने ऐसी खेती तो प्रोत्साहित करने के लिए विशेष योजनाएं शुरू की हैं। कृषि क्षेत्र में सबसे जरूरी कानूनी सुधार की जरूरत को देखते हुए कई कानून संशोधित कर दिए गए हैं।
मंडी कानून में सुधार और कांट्रैक्ट खेती छूट देने के साथ ही प्रमुख फसलों को आवश्यक वस्तु अधिनियम के दायरे से अलग कर दिया गया है। घरेलू कृषि व समुद्री उत्पादों की वैश्विक बाजार में उत्साहजनक मांग रही है। हाल ही में जारी जुलाई के निर्यात आंकड़ों में इन जिंसों का प्रदर्शन शानदार रहा है। चावल का निर्यात पिछले साल के जुलाई माह के मुकाबले पौने दोगुना से भी अधिक रहा है, जबकि अन्य अनाज का निर्यात तीन गुना तक बढ़ा है। पूरी दुनिया की नजर भारतीय कृषि उत्पादों पर है, जिसे भारतीय किसान समय रहते भुना सकते हैं।
निर्यात बढ़ाने को उठा रहे ये कदम
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक कृषि उत्पादों का निर्यात 3,000 करोड़ डॉलर से बढ़ाकर 6,000 करोड़ डॉलर यानी दोगुना करने का एलान किया था। इसके लिए कृषि क्षेत्र को लगातार मदद भी दी जा रही है। इसी दिशा में एफपीओ के गठन की रफ्तार बढ़ाई गई, ताकि छोटी जोत के किसानों को साथ जोड़कर उन्हें मजूबत उत्पादक किसान बनाया जाए। नाबार्ड, स्मॉल फार्मर्स एग्रीबिजनेस कंसोर्टियम (SFAC), सीएसआर और को-ऑपरेटिव सोसाइटीज को एफपीओ के गठन का जिम्मेदारी सौंपी गई। मजबूत कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये निवेश का फैसला लिया है।