क्या किसानों के लिए तैयार, सामुदायिक कृषि व्यापार ?

देश में कृषि व्यापार नीति में ठोस बदलाव की दरकार है। घरेलू बाजार और इंटरनेशनल ट्रेड दोनों से जुड़े मुद्दों को हल करने देश में सामुदायिक व्यापार नीति का खाका तैयार किया जाना चाहिए। सरकारों ने इस को लेकर पहल भी की लेकिन अफसरशाही के चलते किसान उत्पादक संगठन {FPO} सफल नहीं हो सके, अगर सफल हुए भी तो वहां सामुदायिक पुट नहीं रहा परंपरागत व्यवसायी ने इस पर भी कब्जा जमा लिया, इसी का परिणाम है कि किसान से उत्पाद खरीदकर खरीददार रफुचक्कर हो रहे हैं।
ट्रेड पॉलिसी सबसे अहम
असल में खाद्य सुरक्षा के लिये ट्रेड पॉलिसी वाकई सबसे अहम है क्योंकि यह देश में कृषि उत्पादन और आयात पर निर्भरता दोनों को तय करती है। लेकिन अभी तक देश में इन दोनों के बीच कोई सीधा तालमेल नहीं देखते हैं क्योंकि दोनों एक-दूसरे से अलग तय होती रही हैं। सही मायने में कई विशेषज्ञों की माने तो हमारी एग्रीकल्चर ट्रेड पॉलिसी का मतलब है आयात नीति यानी हम आयात की जरूरत के हिसाब से पॉलिसी तय करते हैं या यूँ कहें कि अभी कृषि के लिये कोई व्यापार नीति है ही नहीं। वर्तमान में जो कृषि नीति दिखती है वह वैश्विक बाजार के हिसाब से बनी प्रतीत होती है, ऐसा इसलिए क्योंकि इतने उत्पादन के बाद भी किसान आयात पर ही निर्भर है।
राजनीति के झमेलों में उलझा युवा
कृषि उपज की विक्रय-व्यवस्था को बिचौलियों की एकाधिकार वाली नीति से मुक्त कराने का मार्ग सिर्फ सामुदायिक व्यापार नीति वाली व्यवस्था में ही दिखता है, लेकिन इस व्यवस्था को न ही सही तरीके से समझाया जा रहा है न ही , तकनीकी गेमबाजी के साथ राजनीति के झमेलों में उलझा युवा इसे समझने को तैयार है।
वास्तविक क्रियान्वयन समुदाय से ही हो
देश में कई कानून हैं, अब लगता नहीं कि किसी कानून की आवश्यकता है, सरकारों को चाहिए कि वह इसके क्रियान्वयन पर ध्यान दें। किसी भी योजना को सफल क्रियान्वयन में व्यवस्था सबसे बड़ा महत्व रखती हैं, राजनीति लाभ के लिए कानून तो बन रहे लेकिन त्रुटिपूर्ण छीजन से सारे कार्य दोषपूर्ण हो रहे हैं। सभी योजनाएं बनाने में सरकारों को समुदाय का सहयोग लेना चाहिए जिससे की एकल लाभ वाली परंपराएं समाप्त होकर आय समानता बराबर हो सके।