भारत खिलौना मेला -खिलौने के सहारे बचपन बचाने की पहल

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 27 फरवरी को 11 बजे वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से भारत खिलौना मेला 2021 का उद्घाटन करेंगे. यह वर्चुअल मेला 27 फरवरी से 2 मार्च 2021 तक चलेगा. इस मेले का आयोजन प्रधानमंत्री मोदी के विजन के अनुरूप किया जा रहा है. दरअसल, अगस्त 2020 में अपने मन की बात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि खिलौने न केवल क्रियाशीलता बढ़ाते हैं, बल्कि महत्वाकांक्षाओं को पंख भी लगाते हैं.
खिलौने बच्चों के मस्तिष्क विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और मनोवैज्ञानिक गतिविधि तथा ज्ञान की कुशलता बढ़ाने में बच्चों की मदद करते हैं. बच्चे के समग्र विकास में खिलौनों के महत्व की चर्चा करते हुए प्रधानमंत्री ने पहले भी भारत में खिलौनों के उत्पादन को बढ़ाने पर बल दिया है. इस मेले का उद्देश्य सतत लिंकेज बनाने तथा उद्योग के समग्र विकास पर विचार-विमर्श करने के लिए एक ही प्लेटफॉर्म पर खरीददारों, विक्रेताओं, विद्यार्थियों, शिक्षकों, डिजाइनरों आदि सहित सभी हितधारकों को लाना है.
वाराणसी के 15 खिलौना निर्माता इंडिया टॉय फेयर में अपने उत्पादों का प्रदर्शन करने जा रहे हैं. अधिकारियों के अनुसार यह पहला डिजिटल रूप से सुलभ प्रदर्शनी और प्लेटफॉर्म है जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 1,000 से अधिक प्रदर्शकों से विभिन्न प्रकार के खिलौनों को एक्सप्लोर करने और खरीदने का अवसर प्रदान करेगा और इसमें वेबिनार, पैनल चर्चा आदि होगी.
क्या क्या होगा इस मेले में?
सरकारी प्रवक्ता के अनुसार भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने का विचार यह पाए जाने के बाद आया कि देश में सस्ते खिलौने आयात किए जाने के बाद न केवल भारतीय खिलौना उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, बल्कि बच्चों के स्वास्थ्य पर भी इसका प्रभाव पड़ रहा था क्योंकि इनमें भारी मात्रा में रसायनों और हैवी मेटल आदि का इस्तेमाल होता है.
मेले के मुख्य आकर्षणों में 1,000 से अधिक स्टॉलों के साथ एक वर्चुअल प्रदर्शनी, आकर्षक पैनल चर्चा के साथ ज्ञान सत्र और विभिन्न विषयों पर विशेषज्ञों द्वारा वेबिनार होगा, जिसमें खिलौना-आधारित शिक्षण, शिल्प प्रदर्शन, प्रतियोगिता, क्विज, वर्चुअल टूर, उत्पाद लॉन्च आदि शामिल हैं. इंडिया टॉय फेयर 2021 के लिए वेबसाइट बच्चों, माता-पिता, शिक्षकों और प्रदर्शकों को वर्चुअल मेले में भाग लेने के लिए खुद को पंजीकृत करने में सक्षम बनाएगी, जो भारतीय खिलौने के इकोस्फेयर के विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करेगा.
प्रदर्शकों में भारतीय व्यवसाय शामिल हैं जो खुशनुमा बचपन बनाने और बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ एनसीईआरटी, एससीईआरटी, सीबीएसई के साथ-साथ उनके स्कूलों और शिक्षकों, आईआईटी-गांधीनगर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन और अहमदाबाद स्थित चिल्ड्रन यूनिवर्सिटी शामिल हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' में स्थानीय खिलौनों के लिए 'वोकल' होने की अपील की थी और देश में खिलौनों की समृद्ध परंपरा का उल्लेख किया था.
वाराणसी में लकड़ी के खिलौनों का भी शानदार इतिहास है और यह शहर कभी भारत का सबसे बड़ा खिलौना उत्पादक केंद्र था. 500 से अधिक सदस्यों वाले खिलौना उद्योग सहकारी समिति प्रमुख गोदावरी सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री की वजह से वाराणसी में खिलौना उद्योग का भविष्य बदल रहा है. वाराणसी में संयुक्त निदेशक उद्योग उमेश सिंह ने पत्रकारों को बताया कि इस मेले से क्षेत्र की पारंपरिक कला को बढ़ावा देने के साथ ही संरक्षण में भी मदद मिलेगी. वाराणसी में बने लैकरवेयर और लकड़ी के खिलौनों को जीआई टैग भी मिला है.
अमेरिकन अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि बच्चों को सिर्फ टीवी के सामने बिठा देने से या फिर खेलने के लिए स्मार्टफोन, टेबलेट और दूसरे डिजिटल खिलौने पकड़ा देने से उनका कोई भला नहीं होता. इससे उन्हें अपने आसपास मौजूद लोगों या बच्चों से बात करने का वक्त नहीं मिलता और ना ही वे उनके साथ मिल खेल पाते हैं जबकि यह उनके विकास के लिए बहुत जरूरी है.
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसिन और बेलेव्यू अस्पताल सेंटर के डॉ. एलन मेंडेलजोन का कहना है कि असली खिलौने या किताबें बच्चों को अपने माता पिता या केयर टेकर के ज्यादा करीब ले जाती हैं. ये चीजें बच्चों को उनसे बात करने के भरपूर मौके देती हैं. इस तरह बच्चों का बेहतर मानसिक विकास हो पाता है, जबकि मेंडलजोन के मुताबिक डिजिटल खिलौनों के साथ ऐसा संभव नहीं है.