लखपति दीदी- तालाब के कचरे से खजाना निकालती महिलाएं

असम के कामरूप जिले की रहने वाली मोरोमि हाज़ोवारी का सपना एक बेहतर ज़िन्दगी के साथ अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देना है। लेकिन इस सपने को सच करने में उनकी मदद उनकी किस्मत नहीं बल्कि खरपतवार के रूप में कुख्यात जलकुम्भी कर रही है।
बत्तीस साल की मोरोमि का परिवार अपनी आजीविका के लिए खेती और छोटे-मोटे काम पर निर्भर था। खर्चों के बढ़ने के साथ जैसे-जैसे जीवनयापन कठिन होता गया, उनके पति ने लाइफगार्ड का काम करना शुरू कर दिया।
लेकिन ये भी उनके खर्चे चलाने के लिए काफी नहीं था।
तब मोरोमि ने जलकुम्भी से कागज बनाने वाली एक संस्था में काम शुरू किया। आज दो साल बाद, वह अपने परिवार की सिर्फ गुजर-बसर नहीं, बल्कि एक अच्छे भविष्य की और देखती हैं। “मैंने कभी नहीं सोचा था कि एक अनचाही खरपतवार मेरी आजीविका में मदद करेगी और मुझे वित्तीय विकास देगी। एक समय में एक समस्या माने जानी वाली जलकुम्भी आज विकास का एक जरिया बन गयी है,” मोरोमि ने यह कहते हुए बताया कि इसकी वजह से उन्हें काम के लिए दूसरे प्रदेश में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
जलकुम्भी के उपयोग के नए तरीकों के आने के बाद बहुत से लोगों के जीवन में सुखद बदलाव आ रहे हैं। जलकुम्भी अगर मोरोमि के जीवन में स्थाई आजीविका का जरिया प्रदान करता है, वहीं 24 वर्षीय उद्यमी अनिकेत धर के लिए यह आगे बढ़ने का जरिया है। अनिकेत का स्टार्टअप जलकुम्भी से इको-फ्रेंडली पेपर और अन्य चीजें बनाता है।
“जलकुम्भी एक आक्रामक खरपतवार है जो पारिस्थितिकी को बाधित करता है। इसके उत्पाद बनाकर हम पर्यावरण की मदद भी कर सकते हैं और आस-पास रहने वाले समुदायों के जीवन का स्तर भी सुधार सकते हैं। एक उद्यम के तौर पर हम सिर्फ कागज नहीं बना रहे हैं, बल्कि हम व्यापार को बढ़ावा देने के साथ-साथ पर्यावरण को बचा रहे हैं और स्थानीय समुदायों को सशक्त कर रहे हैं,” उन्होंने कहा।
पानी में खूबसूरत, चमकीले बैंगनी फूलों से लदे जलकुंभी के हरे-भरे कालीन अपने नीचे कई खतरे छुपाये होते हैं। इनकी जड़ों का घना जाल जो जलीय जीवन का दम घोंटता है, पानी के नीचे के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को दबाता है, सिंचाई प्रणाली को बाधित करता है और मछली पकड़ने और खेती करने वाले समुदायों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
मोरोमि और अनिकेत एक बढ़ते हुए समूह का हिस्सा हैं जो असम, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड सहित कई राज्यों में जलकुंभी को महिला सशक्तिकरण और उद्यमशीलता की सफलता के लिए एक सक्षमकर्ता के रूप में देखते हैं। पर्यावरण चेतना, एक टिकाऊ व्यवसाय मॉडल और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन लाने की इच्छा इस बदलाव को बढ़ावा दे रही है।
असम से 3,000 किलोमीटर दूर, दक्षिणी राज्य तमिलनाडु में 39 वर्षीय संगरेश्वरी रहती हैं। करीब एक दशक तक एक माचिस की फैक्ट्री में काम करने से उनकी ज़िंदगी बदबू और डर से भरी हुई थी। लगातार रसायनों के संपर्क में रहने के कारण उनकी त्वचा पर तीखी गंध चिपक गई थी “जो साबुन से धुलने से नहीं निकलती थी।” सिरदर्द, पेट दर्द और मतली अक्सर होती थी, और खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें अक्सर काम से छुट्टी लेनी पड़ती थी।
इसके बाद उन्हें एक ऐसी फैक्ट्री में काम करने का मौका मिला, जो घरेलू और जीवनशैली संबंधी उत्पाद बनाने के लिए जलकुंभी का इस्तेमाल करती है। विरुधुनगर जिले की निवासी संगरेश्वरी कहती हैं, “इसने मेरी ज़िंदगी बदल दी और मुझे कई तरह से सशक्त बनाया।”
“इसने वित्तीय स्थिरता, सुरक्षा और सम्मान का रास्ता खोल दिया,” उन्होंने मुस्कुराते हुए बताया। अब उनकी मासिक आय दोगुनी होकर 9,000 रूपए हो गई है। अब वह अपने परिवार में “सम्मानित निर्णयकर्ता” हैं। संग्रेश्वरी, जिनके पति मुख्य रूप से मौसमी मजदूरी करते हैं, कहती हैं, “हम अपना घर बना रहे हैं और मैं अपने बच्चों को बेहतर भविष्य देने का सपना देखती हूँ।”
जलकुंभी का उपयोग करना पर्यावरण और आपकी जेब दोनों के लिए लाभदायक है। कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है और इसके साथ काम करना आसान है। पर्यावरणविद् माइक पांडे कहते हैं कि यह “ज्यादा ऊर्जा वाले कच्चे माल का एक टिकाऊ विकल्प भी है।”
इस तरह के उद्यम इसे पानी से निकालकर जल निकायों की सफाई में सहयोग कर रहे हैं। इसके अलावा वे इस खरपतवार को कई उपयोगी वस्तुओं में बदल देते हैं, जिसमें हैंडबैग, ऑफिस स्टेशनरी, घर की सजावट की वस्तुएँ, कागज़ और बहुत कुछ जैसे उत्पाद शामिल हैं, जिससे आगे चलकर आय भी होती है।
इसके अलावा, इसे पानी से निकालकर, उद्यमी जल निकायों की सफाई में सहयोग कर रहे हैं। फिर वे खरपतवार को कई उपयोगी वस्तुओं में बदल देते हैं, जिसमें हैंडबैग, ऑफिस स्टेशनरी, घर की सजावट की वस्तुएँ, कागज़ और बहुत कुछ जैसे जीवनशैली उत्पाद शामिल हैं, जिससे आगे चलकर आय भी होती है।
इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (IUCN) ने जलकुंभी को 100 सबसे आक्रामक प्रजातियों में से एक और दुनिया की 10 सबसे खराब खरपतवारों में से एक माना है। इसका आक्रमण इतना तेज़ है कि सिर्फ़ दस जलकुंभी के पौधे आठ महीनों के भीतर लगभग 0.5 हेक्टेयर जल सतह को कवर करते हुए 6.55 लाख पौधों को जन्म दे सकते हैं।
माइक पांडे, जिनकी संस्था ‘अर्थ मैटर्स फाउंडेशन’ महिलाओं को जलकुंभी से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण देती है, ने कहा, “बायो-डिगरेबिलिटी (जैव-निम्नीकरणीयता), अपशिष्ट प्रबंधन और जल संरक्षण इसके कई लाभों में से हैं।”
स्थानीय समुदायों की महिलाओं के लिए जलकुंभी से पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद बनाने का अर्थ घर के नजदीक बेहतर जीवन, वित्तीय स्थिरता और बेहतर जीवन स्तर प्राप्त करना है।उदाहरण के लिए, तमिलनाडु की 27 वर्षीय मुथु प्रिया को माँ बनने के बाद, उनके परिवार के आर्थिक रूप से संघर्ष में होने के बावजूद भी अपने बच्चे की देखभाल के लिए माचिस की डिब्बी बनाने वाली फैक्ट्री में अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी।
फिर उन्हें एक जलकुंभी उत्पाद निर्माण इकाई के बारे में पता चला जो बच्चों लिए एक झूला घर की सुविधा प्रदान करती थी और उन्होंने वहाँ काम करना शुरू कर दिया। “जलकुंभी मुझे वित्तीय स्थिरता प्रदान कर रही है और मैं काम करते हुए अपने बच्चे को देख सकती हूँ। एक कामकाजी माँ इससे ज़्यादा और क्या चाह सकती है?” उन्होंने कहा।
खरपतवार से खजाना
भोर में, जब हवा धुंध और बांस की झाड़ियों की सौंधी खुशबू से भरी होती है, अनिकेत कामगारों के एक समूह को काम शुरू करने का निर्देश देते हैं – जिद्दी जलकुंभी को उखाड़ना, यह जानते हुए कि इन उलझी हुई जड़ों के भीतर उद्यमशीलता की सफलता का वादा छिपा है।
हर बार के जोर के साथ जलाशय मुक्त होता है, यह सांस लेता है और अपनी लंबे समय से छिपी हुई चमकती मुस्कान दिखाता है। उखाड़ी गई खरपतवार को फिर कुछ हफ्तों तक ठीक से सुखाया जाता है, लुगदी में बदला जाता है, और बाद में फैक्ट्री में स्थानीय महिला श्रमिकों द्वारा पर्यावरण के अनुकूल कागज की चादरों में दबाया जाता है। उनका दावा है कि जलकुंभी से कागज बनाने में पारंपरिक तरीकों की तुलना में 10 गुना कम पानी की आवश्यकता होती है।
अनिकेत की तरह, चेन्नई के उद्यमी श्रीजीत नेदुम्पल्ली भी “सर्कुलर इकॉनमी, और लाभ, लोग और ग्रह की ट्रिपल बॉटम लाइन दृष्टिकोण के सिद्धांतों पर काम करते हैं।”