कैसे विकसित होगा भारत , विकासवादी दिशा में सुधार की आवश्यकता

भारत के विकसित करने की दिशा में भयंकर संसाधन एवं भारी भरकम नेताओं की फौज एवं एक बड़ी जनसंख्या के बाद भी कई झोल हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार जितना पैसा विकास सेक्टर के लिए जमीन पर पहुंचना चाहिए था उससे कहीं अधिक पैसा अनावश्यक नेता नगरी एवं फिजूल के सरकारी विभागों पर खर्च हो रहा है। देश का दोनों तरफ समुदाय एवं समुदाय का नेतृत्व करने वालों की विकासवादी दिशा में सुधार की आवश्यकता महसूस हो रही है।
अन्य लोकतांत्रिक देशों से तुलना करें तो भारत के संविधान में सत्ता को पाने या जनता को अपने पक्ष में बनाए रखने 77 साल में 127 संशोधन कर डाले गए,जिसमें सामुदायिक विकास या फिर समुदाय को आर्थिक रूप से मजबूत करने वाले संशोधन बहुत कम हैं,अबकि सबसे अधिक क्षेत्रफल वाले अमेरिका ने 334 साल में मात्र 27 संशोधन किये हैं जिसमें ज्यादातर सामुदाय को आर्थिक रूप से मजबूत करने को लेकर हैं। अब इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता हैं भारत में जनता को क्यों कमजोर रखा जा रहा है।
अब बात करें भिखारियों की तो देश की आधी आबादी ही भिखारी ही मानी जा सकती है, या तो वह सरकार से फ्री प्राप्त कर रही है,या फिर बेरोजगारी,लाचारी जैसी स्थिति में है। बचे रियल भिखारी तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिकए भारत में भिखारियों की संख्या 4,13,670 थी। इनमें 2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं थीं। कुल मिलाकर देश को बंटाधार करने में या यूं कहें विकसित भारत की दिशा में जहां समुदाय को जाग्रत होने की आवश्यकता है वहीं नेता नगरी में वीआईपी कल्चर को रोकने राजनीतिक सुधार की आवश्यकता है।
प्रधानमंत्री ने की कुछ सुधार की शुरूआत
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ सालों में इस को लेकर सुधार की पहल की है,लेकिन जो वीआईपीगिरी के लिए ही नेता बने हों वे अभी भी लोकतंत्र की इस व्यवस्था को तोड़ने के प्रयास में लगे रहते हैं। इधर भिखारियों को लेकर मप्र में उबाल है,लेकिन यह माना जा रहा है कि यह उबाल इस समय की आवश्यकता है, मप्र सरकार भिक्षावृति पर रोक लगाने के बड़े प्रयास के बाद अब समुदायक को भी आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में आगे बढ़ती दिख रही है।
दुनियाभर में वीआईपी कल्चर और भारत
भारत में 5,79,000 से ज्यादा अति महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हैं। अमरीका से 2300 गुणा ज्यादा वीआईपी हैं। चार साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीआईपी कल्चर पर प्रहार किया था। उसके बाद थोड़ी कमी आ रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ के 5 स्थायी यानी सबसे शक्तिशाली देशों में भी वीआईपी की तादाद मामूली ही है। भारत की तुलना में जमीन-आसमान का अंतर है। अमरीका की आबादी 32.97 करोड़ है तो भारत की 130 करोड़। चीन की आबादी 145 करोड़ है व वीआईपी महज 438 हैं। चीन का क्षेत्रफल भारत से 3 गुणा बड़ा है। शीत युद्ध के दौरान दुनिया दो धु्रवों अमरीका व रूस में बंटी थी। 1990 के बाद रूस के एक दर्जन से ज्यादा टुकड़े हो गए। वहां की आबादी 14 करोड़ है व क्षेत्रफल भारत से 5 गुणा ज्यादा है। अति महत्त्वपूर्ण व्यक्तियों की संख्या केवल 312 है। फ्रांस की जनसंख्या पौने सात करोड़ यानी दिल्ली, मुंबई, कोलकाता व चेन्नई से भी कम है। क्षेत्रफल भारत से 7 गुणा ज्यादा है व वीआईपी कुल 109 हैं। हम पर 200 साल राज करने वाले अंग्रेजों की आबादी महज 7 करोड़ है। वहां पर महज 84 वीआईपी हैं।
वीआईपी बनकर देश पर राज
जापान की आबादी करीब पौने 13 करोड़ है व वीआईपी महज 105 हैं। करीब साढ़े 8 करोड़ आबादी वाले जर्मनी में 142 वीआईपी हैं। सवा 5 करोड़ से ज्यादा आबादी वाले दक्षिण कोरिया में 282 वीआईपी हैं। भारत में हर साल एक आस्ट्रेलिया पैदा होता है। वहां की आबादी मुंबई के बराबर यानी 2.66 करोड़ है। वहां केवल 205 अति महत्त्वपूर्ण लोग हैं। देश की संसद व विधानसभाओं में आज आपराधिक लोग पहुंच रहे हैं। वे वीआईपी बनकर फिर देश पर राज करते हैं। क्या कर्णधार ऐसे होने चाहिए। एक वीआईपी के लिए 3 पुलिस जवान बतौर अंगरक्षक तैनात होते हैं। देश में आज 667 की आबादी पर औसतन एक जवान है। जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा व्यवस्था के तहत वीआईपी के आसपास 20-30 जवान व जेड श्रेणी में 15-18 कमांडो तैनात रहते हैं। वाई प्लस श्रेणी में 8-12 व वाई श्रेणी में 6-10 कमांडो कार्यरत होते हैं। इतना ही नहीं एक नेता निकलता है तो उसके पीछे 5 से 10 गाड़ी और चलती हैं,जो कहीं ना कहीं से फिजुलखर्ची से जुड़ीं होती हैं।
पद त्याग सीखें नेता
अमरीका में बराक ओबामा राष्ट्रपति पद त्यागने के बाद एक कंपनी में नौकरी करते हैं। डेविड कैमरून ब्रिटेन में प्रधानमंत्री पद त्यागते ही 10 डाउनिंग स्ट्रीट से झट से बच्चों व पत्नी संग चले गए, पता ही नहीं चला। हमारे यहां मंत्री व सांसद कई-कई साल आवास ही नहीं छोड़ते हैं। ऐसे में क्या देश विकसित हो सकने में सक्षम लग रहा है। इस बात को लेकर कोई चर्चा नहीं हैं। इस को लेकर चर्चा क्यों नहीं है,क्या देश की जनता अभी भी उस लायक नहीं बन सकी हे या बनाया नहीं जा रहा है। विचार करें एवं आपने इस लेख को पढ़ा है तो अपने विचार नीचे कमेंट बाॅक्स में अवश्य दें।